Thudarum movie review: फैन बॉय थरुण मूर्ति के रोमांचक निर्देशन में चमकते हैं अपने बेहतरीन फॉर्म में मोहनलाल

4/26/2025

Thudarum movie review
Thudarum movie review

'थुदरम' फिल्म रिव्यू'

थुदरम फिल्म रिव्यू
कलाकार: मोहनलाल, शोभना
निर्देशक: थरुण मूर्ति
स्टार रेटिंग: ★★★.5

काफी समय बाद हमें मोहनलाल की ऐसी फिल्म देखने को मिली है जो अभिनेता को समर्पित है, न कि सिर्फ स्टार को। हालिया रिलीज़ हुईं 'L2: एंपुरान', 'मलैकोट्टई वालिबन' और 'बरोज़ 3D' जैसी फिल्मों में मोहनलाल को एक बड़े-से-बड़े किरदारों में दिखाया गया, जहां वे एक सुपरस्टार के रूप में नजर आए। वहीं, निर्देशक थरुण मूर्ति, जो अपनी यथार्थवादी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, एक ऐसा किरदार लेकर आए हैं जिसमें भावनात्मक गहराई है और जिसे आम लोग अपने से जोड़ सकते हैं। इसका नतीजा है ‘थुदरम’, जिसमें मोहनलाल को अभिनय के असली रंग दिखाने का पूरा मौका मिलता है — वो रूप जो दर्शक सबसे ज़्यादा पसंद करते हैं।

थुदरम की कहानी क्या है?


बेंज उर्फ शन्मुगम (मोहनलाल), जो कभी चेन्नई में स्टंटमैन थे, अब पथनमथिट्टा के रन्नी में अपनी पत्नी ललिता (शोभना) और दो किशोर बच्चों के साथ सुखी जीवन जीते हैं। वह टैक्सी चलाते हैं — उनकी प्रिय ब्लैक एंबेसडर कार, जो उन्हें उनके मास्टर (भारतीराजा) ने केरल आने पर गिफ्ट की थी। वहीं उनकी पत्नी घर पर मिल चलाती हैं।

बेंज अपने परिवार और एंबेसडर कार से गहरा लगाव रखते हैं और उनकी पूरी दुनिया इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन एक दिन उनका बेटा और उसके कॉलेज के दोस्त कार को एक मस्ती भरी सवारी पर ले जाते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैं। कार वर्कशॉप जाती है, और वहीं एक लड़का उसमें गांजा छिपाकर ले जाता है। पुलिस जब गांजा पकड़ती है, तो कार को जब्त कर लेती है। बेंज, जो भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, कार को वापस पाने की कोशिश में कई घटनाओं में उलझ जाता है, जो उसके परिवार पर भी असर डालती हैं। क्या होता है शन्मुगम के साथ? वो किन मुसीबतों में फंसता है?

फिल्म की रिलीज से पहले, 'ऑपरेशन जावा' और 'सऊदी वेल्लक्का' जैसी यथार्थवादी फिल्मों के निर्देशक थरुण मूर्ति ने कहा था कि 'थुदरम' उनका प्रयास है अभिनेता मोहनलाल को प्रस्तुत करने का — जैसा वे उन्हें स्क्रीन पर देखना चाहते हैं। मूर्ति ने ललटन को एक मध्यवर्गीय टैक्सी ड्राइवर के रूप में पेश किया है, जो अपने परिवार से बेहद प्यार करता है और एक छोटे शहर की सरल कहानी में जीता है। फिल्म देखते वक्त आपको 'दृश्यम' जैसी भावनाएं मिलती हैं — शन्मुगम और उनके परिवार के जरिए, जहां एक पारिवारिक कहानी अचानक एक अप्रत्याशित भयावह घटना में बदल जाती है।

के.आर. सुनील और थरुण मूर्ति की पटकथा अच्छी तरह लिखी गई है और बेहद टाइट है, जिसमें हर किरदार को पूरा महत्व मिलता है। पहले हाफ में फिल्म की गति थोड़ी धीमी है, लेकिन दूसरे हाफ में यह रोमांच और ट्विस्ट्स के साथ तेज़ हो जाती है, जिससे दर्शक सीट से चिपके रहते हैं। डायलॉग्स में दिए गए पॉप कल्चर रेफरेंस और खुद पर हंसी उड़ाने वाले संवाद फिल्म में मज़ा जोड़ते हैं, साथ ही ललटन की पुरानी फिल्मों के भी ज़िक्र हैं। मोहनलाल के लिए कुछ 'मास' डायलॉग्स भी डाले गए हैं ताकि उनके फैंस को भी पूरी संतुष्टि मिले।

मोहनलाल का अभिनय फिल्म में बेहतरीन है। हर सीन में उन्होंने अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया है। पहले और दूसरे हाफ में उनके किरदार के ट्रांसफॉर्मेशन को देखना बेहद प्रभावशाली है। करीब 15 साल बाद शोभना को मोहनलाल के साथ कास्ट करना एक बेहतरीन निर्णय है — खासतौर पर भावनात्मक दृश्यों में उनकी केमिस्ट्री फिल्म को अलग स्तर पर ले जाती है। बाकी कलाकार जैसे बीनू पप्पू और प्रकाश वर्मा ने भी दमदार अभिनय किया है।

'थुदरम' मोहनलाल की 360वीं फिल्म है और तकनीकी टीम ने इसे यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जैक्स बिजॉय का संगीत, खासकर बैकग्राउंड स्कोर शानदार है और शाजी कुमार की सिनेमैटोग्राफी भी बेहतरीन है। थरुण मूर्ति का निर्देशन दर्शकों को एक ऐसी फिल्म देता है जो सिर्फ मोहनलाल के फैंस के लिए नहीं, बल्कि हर दर्शक के लिए एक शानदार अनुभव है।