'Sikandar review: कमजोर कहानी और फीकी रश्मिका मंदाना ने सलमान की सबसे कमजोर फिल्म को और गिराया
3/30/2025


सिकंदर
कास्ट: सलमान खान, रश्मिका मंदाना, काजल अग्रवाल, सत्यराज, शर्मन जोशी, प्रतीक बब्बर, अंजिनी धवन, जतिन सरना
निर्देशक: ए.आर. मुरुगदोस
रेटिंग: ★★
'सिकंदर' का ट्रेलर रिलीज से महज एक हफ्ते पहले आया। इसके पीछे तीन संभावनाएँ हो सकती हैं—पहली, मार्केटिंग रणनीति जिससे फिल्म को रिलीज तक चर्चा में बनाए रखा जाए। दूसरी, फिल्म कुछ दिनों पहले तक शूट की जा रही थी, जो कि सच भी बताया जा रहा है। तीसरी—और सबसे डराने वाली बात—निर्माताओं को खुद फिल्म पर भरोसा नहीं था। 150 मिनट की फिल्म देखने के बाद मुझे तीसरी संभावना ही सही लगी।
क्या है 'सिकंदर' की कहानी?
फिल्म की कहानी राजकोट के 'राजा जी' संजय राजकोट (सलमान खान) उर्फ सिकंदर के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे उसके 'प्रजा' उसकी दयालुता और करुणा के लिए पसंद करती है। उसकी पत्नी साईश्री (रश्मिका मंदाना) उसका सहारा है, जो उसे खतरे से बचाती है, वह भी बिना उसे बताए। लेकिन हर ऐसी फिल्म की तरह, एक भ्रष्ट मंत्री और उसका बिगड़ैल बेटा सिकंदर से टकरा जाते हैं, और उसके बाद क्या होता है, यही फिल्म की कहानी है।
निर्देशन और स्क्रीनप्ले
निर्देशक और पटकथा लेखक ए.आर. मुरुगदोस का काम बेहद कमजोर है। फिल्म सलमान के एंट्री सीन से सीधे शुरू होती है, लेकिन उसके बाद देखने लायक कुछ भी नहीं बचता, क्योंकि पहले हाफ में ही सीन जल्दबाजी में खत्म होते महसूस होते हैं। एडिटिंग (विवेक हर्षन) भी खराब है।
फिल्म में थोड़ा सस्पेंस जोड़ा जा सकता था, जैसे सलमान की ही फिल्म 'सुल्तान' (2015) की तरह कहानी को गहराई दी जाती। अगर फिल्म की दूसरी छमाही में कोई बड़ा खुलासा रखा जाता, तो इमोशनल कनेक्शन बन सकता था। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है, जिससे यह फिल्म एक आम मसाला फिल्म का और भी फीका संस्करण लगती है।
कैसा है सलमान खान और रश्मिका मंदाना का अभिनय?
सलमान खान एक्शन दृश्यों में अब भी शानदार लगते हैं। जब वह किसी मैदान में खड़े होते हैं, तो उनकी मौजूदगी ही काफी होती है। लेकिन कमजोर निर्देशन के कारण उनका अभिनय पहले से भी कमजोर लगने लगता है।
रश्मिका मंदाना की डायलॉग डिलीवरी की समस्या इस फिल्म में भी बरकरार है। वह अनconvincing लगती हैं, और फिल्म में उन्हें कोई ऐसा सीन नहीं मिलता जिससे वह खुद को साबित कर सकें। उनका एकमात्र आत्म-जागरूक मोमेंट तब आता है जब वह सलमान के साथ उम्र के अंतर पर टिप्पणी करती हैं—"हमारी उम्र में फर्क ज़रूर है, पर सोच में नहीं।" और 'लग जा गले' गाने का बर्बाद किया गया संस्करण तो छोड़ ही दीजिए, जिसे न केवल खराब गाया गया है, बल्कि रश्मिका द्वारा बेहद खराब तरीके से लिप-सिंक किया गया है।
क्या काम करता है और क्या नहीं?
शर्मन जोशी, जो सलमान के दोस्त की भूमिका में हैं, को इतनी छोटी भूमिका में देखकर झटका लगता है। क्या यह वही प्रतिभाशाली कलाकार है जिसने '3 इडियट्स' और 'गोलमाल' में बेहतरीन अभिनय किया था?
फिल्म ने एक चीज़ पूरी लगन से की—ज्यादा से ज्यादा कलाकारों को कास्ट किया और फिर उन्हें बैकग्राउंड में खड़ा कर दिया। सत्यराज (विलेन, मंत्री प्रधान) इस फिल्म में सबसे खराब कास्टिंग चॉइस में से एक साबित होते हैं। उनके डायलॉग बुरी तरह डब किए गए हैं और उनका खलनायकपन भी फीका लगता है। वह उस अनगिनत गुंडों जितना भी डरावना नहीं लगते, जिन्हें सलमान एक घूंसे में उड़ा देते हैं।
प्रतीक बब्बर (अर्जुन प्रधान) का किरदार कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाता है, और यह उनके लिए अच्छा ही हुआ, क्योंकि यह फिल्म ज्यादा देर रुकने लायक थी ही नहीं।
सलमान की पिछली फिल्मों में उनके कुछ डायलॉग और हुक स्टेप्स आइकॉनिक हुआ करते थे, लेकिन 'सिकंदर' में ऐसा कुछ भी याद रखने लायक नहीं है। फिल्म का संगीत भी कमजोर है और कोई भी गाना दर्शकों पर असर नहीं छोड़ता। संतोष नारायणन का बैकग्राउंड स्कोर कुछ एक्शन दृश्यों में काम करता है, लेकिन ज्यादा प्रभावी नहीं है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, 'सिकंदर' वह ईदी नहीं है, जिसकी सलमान के प्रशंसकों को उम्मीद थी। पहले समझ में नहीं आता था, लेकिन सलमान दिल में तो जगह बना ही लेते थे। इस बार तो वह भी लगभग टूट चुका है।
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