assam chief minister ने विधानसभा की नमाज break पर लगाई रोक
8/31/2024
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय की घोषणा की है, जिसमें असम विधानसभा में शुक्रवार की नमाज के लिए मिलने वाली 2 घंटे की छुट्टी पर रोक लगा दी गई है।
यह निर्णय राज्य की विधानसभा कार्यवाही को सुचारू और निरंतर बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है।
इस प्रथा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यह प्रथा पहली बार 1937 में लागू की गई थी, जब असम की राजनीति पर मुस्लिम लीग का प्रभाव था। उस समय, सैयद सादुल्ला, जो मुस्लिम लीग के सदस्य थे, असम के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने शुक्रवार की नमाज के लिए मुस्लिम विधायकों को 2 घंटे की छुट्टी देने की परंपरा शुरू की थी, जिससे कि वे अपनी धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें। यह प्रथा पिछले कई दशकों से चली आ रही थी और इसके तहत मुस्लिम विधायकों को शुक्रवार को नमाज अदा करने के लिए असेंबली की कार्यवाही से छुट्टी मिलती थी।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का ट्वीट
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस निर्णय की जानकारी ट्विटर के माध्यम से दी। उन्होंने कहा कि असम विधानसभा में अब इस प्रकार की कोई विशेष छुट्टी नहीं दी जाएगी। उनका मानना है कि यह निर्णय सभी विधायकों के लिए समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को बढ़ावा देगा। उन्होंने यह भी कहा कि विधानसभा की कार्यवाही के दौरान किसी भी तरह के ब्रेक या छुट्टी की अनुमति नहीं दी जाएगी, ताकि विधानसभा का काम सुचारू रूप से चलता रहे और किसी भी प्रकार का व्यवधान न हो।
प्रतिक्रिया और परिणाम
मुख्यमंत्री के इस निर्णय पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग इसे एक सकारात्मक कदम मानते हैं, जो धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा देता है। वहीं, कुछ लोग इस निर्णय की आलोचना भी कर रहे हैं, इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मानते हुए।
इस निर्णय के बाद, विधानसभा की कार्यवाही के दौरान सभी विधायकों को समान नियमों का पालन करना होगा, चाहे उनका धर्म कोई भी हो।
भविष्य के लिए संकेत
इस निर्णय का असर केवल विधानसभा के सदस्यों पर ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य सरकारी संस्थानों और संगठनों पर भी पड़ सकता है। यदि यह नीति सफल रहती है, तो इसे अन्य राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा भी अपनाया जा सकता है। इससे धार्मिक गतिविधियों और सरकारी कार्यों के बीच एक संतुलन स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के इस निर्णय ने असम में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में नई बहस को जन्म दिया है। आगे चलकर यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का राज्य की राजनीति और समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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