भारत में सरोगेसी कानूनों की आयु सीमा की समीक्षा करेगा Supreme Court
1/8/2025
भारत में सरोगेसी कानून 2021 के तहत इच्छित माता की उम्र 23 से 50 वर्ष और इच्छित पिता की उम्र 26 से 55 वर्ष निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस कानून में सरोगेट माताओं और अन्य आयु सीमाओं से जुड़े प्रावधानों की जांच करने का निर्णय लिया है और 11 फरवरी को इस मामले की सुनवाई करेगा।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट और सहायक प्रजनन तकनीक (ART) अधिनियम, 2021 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली लगभग 15 याचिकाओं पर सुनवाई की। अदालत ने केंद्र सरकार को इस मामले में लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, ने कहा कि सरकार लिखित उत्तर दाखिल करेगी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी। अदालत ने इस मामले में अंतरिम आदेश देने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
सरोगेसी कानून 2021 के प्रमुख प्रावधान
इच्छित माता की उम्र 23 से 50 वर्ष और इच्छित पिता की उम्र 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
सरोगेट मां को शादीशुदा और 25 से 35 वर्ष की उम्र के बीच होना चाहिए।
सरोगेट मां के पास कम से कम एक जैविक संतान होनी चाहिए।
एक महिला अपने जीवन में केवल एक बार सरोगेट मां बन सकती है।
सरोगेट माताओं के हितों की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेट माताओं के शोषण को रोकने के लिए एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया, क्योंकि भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगा दी गई है।
न्यायालय ने सुझाव दिया:
एक डेटाबेस होना चाहिए, जिससे किसी महिला का बार-बार शोषण न हो।
सरोगेट मां को सीधे भुगतान करने के बजाय, एक अधिकृत सरकारी संस्था द्वारा भुगतान किया जाना चाहिए।
अल्ट्रुइस्टिक सरोगेसी और मुआवजे की चुनौती
केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया कि भारत में केवल परोपकारी (अल्ट्रुइस्टिक) सरोगेसी की अनुमति दी गई है, जिससे वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाई जा सके। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मौजूदा कानूनों में सरोगेट माताओं के लिए उचित मुआवजा तंत्र नहीं है।
मुद्दे:
मौजूदा प्रावधानों में केवल चिकित्सा खर्च और बीमा कवर किया गया है, जो अपर्याप्त है।
सरोगेसी के लिए इच्छुक अविवाहित महिलाओं को कानून से बाहर रखा गया है।
ART अधिनियम के तहत ओसाइट (अंडाणु) दान पर प्रतिबंध लगाया गया है।
मुख्य याचिकाकर्ता की दलील
चन्नई स्थित बांझपन विशेषज्ञ डॉ. अरुण मुथुवेल इस मामले के मुख्य याचिकाकर्ता हैं। उनकी याचिका में सरोगेसी और ART कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
उन्होंने अदालत में दलील दी कि यह कानून:
भेदभावपूर्ण, बहिष्करणात्मक और मनमाना है।
प्रजनन न्याय (Reproductive Justice) के मामले में महिलाओं की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
सरकार "आदर्श परिवार" की अपनी परिभाषा थोप रही है, जो व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट सरोगेसी कानूनों की समीक्षा कर सकता है और संभावित रूप से:
सरोगेट माताओं के लिए मुआवजा तंत्र में बदलाव की सिफारिश कर सकता है।
अविवाहित महिलाओं और अन्य वंचित समूहों को सरोगेसी की अनुमति देने पर विचार कर सकता है।
सरोगेसी में नियमन और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए नई व्यवस्था लागू करने का निर्देश दे सकता है।
निष्कर्ष
भारत में सरोगेसी कानूनों को लेकर जारी बहस अब सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आ गई है। इस मामले का फैसला न केवल सरोगेट माताओं के अधिकारों को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत में प्रजनन चिकित्सा के भविष्य को भी तय कर सकता है। 11 फरवरी को होने वाली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि अदालत इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।
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